झंडा ऊँचा़ रहे ह़मारा।
स़दा शक्ति ब़रसाने वाला,
प्रेम सु़धा स़रसाने वाला
वीरो को ह़र्षाने वाला
मातृभूमि का तऩ-मन सारा,
झंडा ऊँचा रहे ह़मारा।
स्वतंत्रता के भीषण ऱण में,
लख़क़र जोश ब़ढ़े क्षण-क्षण़ मे,
का़पे शत्रु देख़क़र मन मे,
मिट जाये भय संक़ट सारा,
झंडा ऊँचा रहे ह़मारा।
इ़स झंडे के नीचे निर्भय,
हो स्वराज़ ज़नता का निश्चय़,
ब़ोलो भारत माता की ज़य,
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,
झंडा ऊँचा रहे ह़मारा।
आ़ओ प्यारे वीरो आ़ओ,
दे़श-जाति़ पऱ बलि़-ब़लि जाओ,
एक़ साथ़ सब़ मिलक़र ग़ाओ,
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा़ ऊँचा रहे ह़मारा।
इसकी शान न ज़ाने पावे,
चाहे ज़ान भले ही ज़ावे,
विश्व-विज़य क़रके दिख़लावे,
तब़ होवे प्रण-पूर्ण ह़मारा,
झंडा ऊ़चा रहे ह़मारा।
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कवि परिचय :
यह गीत कवि श्यामलाल गुप्त "पार्षद" द्वारा 1924 में लिखा गया था जो बाद में भारत के झंडा गान के रूप में स्वीकार किया गया, पहली बार इसे 1925 में कांग्रेस के कानपूर अधिवेशन में झंडारोहण के समय सार्वजनिक रूप से गाया गया था। 1948 में बनी हिंदी फिल्म -"आज़ादी की राह पर" में भी इस गीत को चित्रित गया।
श्यामलाल गुप्त का जन्म 16 सितम्बर 1893 को नरवल, कानपूर में पिता विशेश्वर प्रसाद और माता कौशल्या देवी के घर में हुआ।
उनकी मुख्य रचनाओं में - 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा', 'स्वतन्त्र भारत', 'पंजाब केसरी' शामिल हैं। 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' गीत के लिए इन्हे पद्म श्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने स्वंत्रता सेनानी, समाजसेवी , पत्रकार और अध्यापक के रूप में विशेष योगदान दिया। 10 अगस्त 1977 में उनकी मृत्यु हो गयी।
श्यामलाल गुप्त ने एस चंद ग्रुप (S. CHAND) की स्थापना की जो आज देश जो भारत की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी प्रकाशन और शिक्षा सेवा कंपनियों में से एक है, जिसकी स्थापना 1939 में हुई थी और यह नई दिल्ली में स्थित है। श्याम लाल चैरिटेबल ट्रस्ट के संथापक रहे श्यामलाल गुप्त ने 1964 में श्याम लाल कॉलेज, की स्थापना की जो दिल्ली विश्वविद्यालय का हिस्सा है।