भारतीय संविधान: अनुच्छेद, संशोधन और नीति निदेशक तत्त्व (DPSP) – पूरा विस्तृत लेख

भारतीय संविधान विश्व के सबसे विस्तृत और व्यापक संविधानों में से एक है। इसमें नागरिकों के अधिकार, कर्तव्य, शासन व्यवस्था, न्यायपालिका की शक्तियाँ, केंद्र एवं राज्य के बीच संबंध, नीति निर्धारण के सिद्धांत और देश की प्रशासनिक संरचना को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। नीचे संविधान के तीन महत्वपूर्ण भाग—अनुच्छेद (Articles), संशोधन (Amendments) और नीति निदेशक तत्त्व (DPSP)—को स्पष्ट, सुव्यवस्थित और परीक्षा उपयुक्त तरीके से समझाया गया है।

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद (Articles)

भारतीय संविधान मूल रूप से 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियों में विभाजित था। समय के साथ नए संशोधनों और परिवर्तनों के बाद अनुच्छेदों की संख्या बढ़ी है। नीचे प्रमुख अनुच्छेदों का विषयवार सार दिया गया है:

1.1 मूल अधिकार (Fundamental Rights) – अनुच्छेद 12 से 35

  • अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार: सभी नागरिक कानून के समक्ष समान।
  • अनुच्छेद 15 – भेदभाव निषेध: धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव निषेध।
  • अनुच्छेद 19 – स्वतंत्रता के अधिकार: भाषण, अभिव्यक्ति, आवागमन, पेशा चुनने की स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: बिना विधि की प्रक्रिया के जीवन और स्वतंत्रता का हनन नहीं।
  • अनुच्छेद 21A – शिक्षा का अधिकार: 6–14 वर्ष तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा।
  • अनुच्छेद 25–28 – धार्मिक स्वतंत्रता.
  • अनुच्छेद 32 – संवैधानिक उपचार का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट में सीधे याचिका का अधिकार (डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इसे “संविधान की आत्मा” कहा)।

1.2 राज्य का संगठन – अनुच्छेद 1 से 4

  • अनुच्छेद 1: भारत राज्यों का संघ है।
  • अनुच्छेद 2–4: नए राज्यों का निर्माण, सीमाओं में परिवर्तन।

1.3 केंद्र और राज्य सरकार – महत्वपूर्ण अनुच्छेद

  • अनुच्छेद 72: राष्ट्रपति का क्षमादान अधिकार।
  • अनुच्छेद 74–75: प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद।
  • अनुच्छेद 76: महान्यायवादी (Attorney General)।
  • अनुच्छेद 124–147: सुप्रीम कोर्ट की संरचना व शक्तियाँ।
  • अनुच्छेद 214–231: हाई कोर्ट।

1.4 केंद्र–राज्य संबंध

  • अनुच्छेद 246: संघ, राज्य और समवर्ती सूची की शक्तियाँ।
  • अनुच्छेद 280: वित्त आयोग।
  • अनुच्छेद 312: अखिल भारतीय सेवाओं का गठन।

2. भारतीय संविधान के संशोधन (Constitutional Amendments)

संविधान में बदलाव या सुधार “संशोधन” के माध्यम से किए जाते हैं। भारत में अब तक 100+ संशोधन हो चुके हैं। कुछ बेहद महत्वपूर्ण संशोधन नीचे दिए गए हैं:

2.1 महत्वपूर्ण संशोधन

  • 1वाँ संशोधन (1951): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध।
  • 24वाँ संशोधन (1971): संसद की संशोधन शक्ति को मजबूत किया।
  • 25वाँ संशोधन (1971): संपत्ति के अधिकार में परिवर्तन (अनुच्छेद 31)।
  • 39वाँ संशोधन (1975): प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से बाहर किया (बाद में निरस्त)।
  • 42वाँ संशोधन (1976): इसे “मिनी संविधान” कहा जाता है — प्राक्कथन में “साम्यवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता” जोड़ा गया। DPSP में कई प्रावधान जोड़े गए।
  • 44वाँ संशोधन (1978): संपत्ति का अधिकार हटकर कानूनी अधिकार बना। राज्य की शक्तियाँ सीमित की गईं।
  • 52वाँ संशोधन (1985): दल-बदल विरोधी कानून।
  • 61वाँ संशोधन (1989): मतदान आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई।
  • 73वाँ और 74वाँ संशोधन (1992): पंचायत और नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा मिला।
  • 86वाँ संशोधन (2002): शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A)।
  • 101वाँ संशोधन (2016): GST (वस्तु एवं सेवा कर)।

3. नीति निदेशक तत्त्व (Directive Principles of State Policy – DPSP)

DPSP संविधान के Part IV (अनुच्छेद 36–51) में शामिल हैं। ये सरकार के लिए नीति-निर्देशन का मार्गदर्शक ढांचा प्रदान करते हैं। ये न्यायालय में बाध्यकारी नहीं होते, परंतु शासन के लिए मूलभूत सिद्धांत माने जाते हैं।

3.1 सामाजिक और आर्थिक सिद्धांत

  • न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था
  • काम और शिक्षा के लिए समान अवसर
  • न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करना
  • बुजुर्गों, बच्चों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा

3.2 गांधीवादी सिद्धांत

  • ग्राम पंचायतों को सशक्त करना
  • कुटीर उद्योगों को बढ़ावा
  • पशु संरक्षण
  • मद्यनिषेध (Prohibition)

3.3 उदार एवं आधुनिक सिद्धांत

  • अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा
  • न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा
  • पर्यावरण संरक्षण

3.4 अनुच्छेद 51

भारत की विदेश नीति के लिए दिशा-निर्देश — अंतरराष्ट्रीय शांति, सम्मान, न्यायपूर्ण संबंध।

4. DPSP और मौलिक अधिकार का संबंध

मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) नागरिकों को स्वतंत्रता और सुरक्षा प्रदान करते हैं, जबकि DPSP सरकार को सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा निर्धारित करने में मार्गदर्शन देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि “दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू” हैं।

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